दुनिया भर में विचारधाराओं की लड़ाई सदियों से चली आ रही है किंतु भारत में इसका एक विचित्र रूप दिखता है। जहाँ दुनिया के अन्य हिस्सों में कम्युनिस्ट सत्ता में हैं वहाँ वह अपने देश के प्रति सजग है किन्तु भारत में हम इस विचारधारा द्वारा भारतीय संस्कृति, भौगोलिक सीमाओं का सम्मान नहीं देखते। यह कभी आतंकियों के पक्ष में खड़े होते हैं तो कभी रोहिंग्या जैसे घुसपैठियों के समर्थन में। राष्ट्रवाद जैसे शब्द को यह नकारते हैं और राष्ट्रवाद में यकीन रखने वालों को अपना शत्रु मानते हैं। मै सीताराम पोसवाल एक समाज सेवक [Sitaram Poswal Samaj Sevak] इस विचारधारा के विरोधी हूं और मैंने राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को हमेशा समर्थन दिया है। यही कारण है कि आजादी से पहले से ही राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ इनका विरोध है और जहाँ इनकी सत्ता होती है वहाँ इनका विरोध हिंसक हो जाता है। केरल में संघ के स्वयंसेवकों की हत्या कोई नई बात नहीं। आजादी के बाद बंगाल में भी जनसंघ और काँग्रेस के कार्यकर्ताओं की नृशंस हत्या कम्युनिस्ट कर चुके हैं।
राष्ट्रवाद है क्या?
राष्ट्रवाद एक राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विचार है। इस विचार को मानने वाले लोग अपने राष्ट्र के प्रति वफादारी और प्रेम को स्वयं से ऊपर रखते हैं। राष्ट्र सर्वप्रथम और फिर मैं, इस सिद्धांत को मानने वाला यह समुदाय अपनी भाषिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समानताओं को महत्व देता है और उसकी पहचान को मजबूत करने की कोशिश करता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार और गुरुजी के नाम से प्रसिद्ध उनके उत्तराधिकारी एम. एस. गोलवलकर ने राष्ट्रवाद को विशेष भारतीय संदर्भ में परिभाषित किया। उनके विचारों को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद को एक विशिष्ट सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के साथ जोड़ा।
हेडगेवार भारतीय राष्ट्रवाद को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रूप में परिभाषित करते हैं, जिसमें भारत की प्राचीन संस्कृति, इतिहास और परंपराओं को केंद्रीय स्थान है। वे मानते थे कि भारत एक सांस्कृतिक इकाई है, जिसकी जड़ें हजारों साल पुरानी सभ्यता में हैं। हेडगेवार जी यह भी मानते हैं कि भारतीय राष्ट्रवाद का आधार हिंदू संस्कृति है। उनका मानना था कि भारत की पहचान और उसकी आत्मा हिंदू धर्म और संस्कृति में निहित है। हालांकि, उनके हिंदू धर्म के विचारों को गलत रूप में प्रस्तुत किया गया। हेडगेवार जी के विचारों में हिंदू धर्म का अर्थ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक व्यापक सांस्कृतिक पहचान है।
हेडगेवार जी के बाद गुरुजी गोलवलकर साहब ने आरएसएस का नेतृत्व किया और उनके विचारों को आगे बढ़ाया। उनका एकात्म मानववाद का सिद्धांत आज भी बहुत महत्वपूर्ण है। एकात्म मानववाद के अनुसार माज के सभी वर्गों का एक सामूहिक अस्तित्व और उद्देश्य होता है। उनके अनुसार, राष्ट्र एक जीवित इकाई है, जो भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक तत्वों से मिलकर बनी होती है। हिन्दुत्व के विचार पर भी गोलवलकर पूर्ण रूप से हेडगेवार जी से सहमत थे। वह उनके विचारों में सामाजिक समरसता और समानता को भी जोड़ते हुए कहते हैं कि समाज में जातिवाद, साम्प्रदायिकता और अन्य विभाजनकारी तत्वों को समाप्त करने की आवश्यकता है, ताकि एक मजबूत और एकजुट राष्ट्र का निर्माण किया जा सके।
केशव बलिराम हेडगेवार और एम. एस. गोलवलकर दोनों के ही अनुसार, राष्ट्रवाद की परिभाषा सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण पर आधारित है। दोनों के ही विचारों में राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और सामाजिक समरसता प्रमुख तत्व थे, जो आज भी भारतीय राष्ट्रवाद की परिभाषा में महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
गोलवलकर जी के सामाजिक समरसता के विचारों की आवश्यकता हमें बहुत वर्षों बाद नजर आती है है जब हम धर्म के आधार पर अलग राष्ट्र की मांग को देखते हैं। हम देखते हैं कि विचारधारा का नाम लेकर जाति आधारित राजनैतिक दल कुछ राज्यों में पनपते हैं जिससे न सिर्फ पिछड़े वर्ग की राजनीति को नुकसान पहुंचा बल्कि वह एक जाति की राजनीति का केंद्र बन गया।
ऐसा नहीं कि राष्ट्रवाद सिर्फ संघ की विचारधारा रही हो जैसा कम्युनिस्ट प्रचारित करते हैं। राष्ट्रवाद ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख प्रेरक शक्ति थी। महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने राष्ट्रवाद के विचार को अपनाया और इसी विचार ने जन-जन में स्वतंत्रता के लिए जागरूकता और उत्साह पैदा किया।
वर्ष 2016 की दुर्भाग्यपूर्ण घटना
वर्ष 2016 में हमने देश में विभाजनकारी ताकतों को देश के ही विरुद्ध जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में नारे लगाते देखा। देश की सबसे बेहतर विश्वविद्यालय की छवि को एक विचारधारा ने धक्का पहुंचा दिया। जेएनयू जैसे बड़े विश्वविद्यालयों में अक्सर विभिन्न विचारधाराएँ पाई जाती हैं। युवा जोश होने के कारण यहाँ वामपंथी, दक्षिणपंथी और अन्य राजनीतिक विचारधाराओं का टकराव होता है। भारत विरोधी नारे अक्सर वामपंथी विचारधारा के उन तत्वों का परिणाम होते हैं जो राज्य के नीतियों और कार्यों के खिलाफ अपना विरोध प्रकट करते हैं। मै सीताराम पोसवाल एक सामाजिक कार्यकर्ता (Sitaram Poswal Social Worker) मानता हूं कि इन मुद्दों पर गहन विचार विमर्श और संवाद आवश्यक है। जेएनयू के छात्रों का मानना है कि उन्हें अपने विचार और विरोध प्रकट करने का अधिकार है। वे इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में देखते हैं और इसे लोकतांत्रिक अधिकार मानते हैं। दुर्भाग्य यह है कि उनके मस्तिष्क को इतना दूषित किया गया कि राष्ट्र विरोधी नारों को वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकार मानते हैं, देशद्रोह नहीं।
इन नारों में एक और महत्वपूर्ण बात नजर आती है कि कई बार यह नारे उन समुदायों या समूहों की ओर से आते हैं जो महसूस करते हैं कि वे सामाजिक या आर्थिक रूप से हाशिए पर हैं। ऐसे वर्ग को अपने राजनैतिक उद्देश्यों के लिये एक विचारधारा उन्हें देश और धर्म के खिलाफ भड़काती हैं। असंतोष उत्पन्न करके इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करती है जिसका नुकसान देश की संप्रभुता को होता है।
भारत में राष्ट्रवाद के विचार की आवश्यकता
भारत एक बहुसांस्कृतिक, बहुभाषी और बहुधार्मिक देश है जहां विभिन्न समुदायों के बीच एकता और समन्वय बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। हम जेनयू की इस घटना के ही कारणों को देखें, इस विचारधारा की कार्यप्रणाली को देखें तो हमें ऐसे कई कारण मिलते हैं जो राष्ट्रवाद की आवश्यकता को दर्शाते हैं।
- राष्ट्रीय एकता: भारत की विविधता को देखते हुए, राष्ट्रवाद वह बल है जो सभी भिन्नताओं के बावजूद लोगों को एक साझा राष्ट्रीय पहचान के तहत एकजुट करता है। यह सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधताओं के बीच पुल का काम करता है। आज उत्तर से दक्षिण तक हम कहीं भी जाएं, सांस्कृतिक परिवर्तन के बावजूद एक देश की भावना रहती है।
- सामाजिक स्थिरता: राष्ट्रवाद सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा देता है। यह देश के नागरिकों को यह अहसास दिलाता है कि वे एक बड़े राष्ट्रीय परिवार का हिस्सा हैं, जिससे वे समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति अधिक सहिष्णु और सहयोगी बनते हैं।
- आर्थिक विकास: राष्ट्रवाद आर्थिक विकास के लिए एक प्रेरक शक्ति हो सकता है। जब नागरिकों में अपने देश के प्रति गर्व और प्रेम होता है, तो वे राष्ट्रीय विकास में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और देश की प्रगति में योगदान देते हैं।
- संप्रभुता और सुरक्षा: राष्ट्रवाद देश की संप्रभुता और सुरक्षा को बनाए रखने में मदद करता है। यह बाहरी खतरों और आंतरिक विभाजक तत्वों के खिलाफ एक मजबूत सुरक्षा कवच का काम करता है।
- राष्ट्रीय पहचान: ग्लोबलाइजेशन के युग में, राष्ट्रीय पहचान का संरक्षण महत्वपूर्ण है। राष्ट्रवाद हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं का सम्मान करने और उन्हें संरक्षित करने की प्रेरणा देता है।
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भारत जैसे विविधतापूर्ण और जटिल समाज में राष्ट्रवाद एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो राष्ट्रीय एकता, सामाजिक स्थिरता, और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है। जेएनयू में लगे भारत विरोधी नारों के पीछे विभिन्न विचारधारात्मक, सामाजिक और राजनीतिक कारण हो सकते हैं, जिन्हें समझने और संबोधित करने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रवाद का उपयोग समावेशी और सकारात्मक उद्देश्यों के लिए किया जाए, जिससे समाज में विभाजन के बजाय एकता और सहयोग को बढ़ावा मिले।
इस लेख का अंत मैं यही कहते हुए करूंगा कि राष्ट्रवाद एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो समाज में एकता, स्वतंत्रता और विकास को प्रोत्साहित करता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, राष्ट्रवाद ने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक विकास तक विभिन्न महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों ने राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित करने और समाज में इसकी जड़ों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। राष्ट्रवाद, जब समावेशी और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ अपनाया जाता है, तो यह किसी भी देश की समृद्धि और एकता के लिए एक महत्वपूर्ण शक्ति साबित हो सकता है।