Modis Hindu heart and Rahul Babas Childish Intelligence

मोदी का हिंदू हृदय और राहुल बाबा की बाल बुद्धि


हिन्दू हिंसक है अथवा अहिंसक? सवाल तैर रहा है…। उससे भी महत्वपूर्ण है यह सवाल खड़ा कहां से हुआ और क्यों ही खड़ा हुआ? क्या हिन्दु और हिन्दुत्व को किसी प्रमाण पत्र की जरूरत है और वह भी ऐसे व्यक्ति से जो जन्मत: इस परम्परा से नहीं है, जिनका डीएनए इस महान और उदार धर्म से जुड़ा नहीं है। परन्तु हिन्दुत्व की पालन करने वाले, हिन्दू धर्म को जीने वाले ऐसे लोगों को बेअदबी जैसी किसी नकारात्मक शब्दावली से नहीं नवाजते बल्कि बच्चा बुद्धि कहकर माफ कर देते हैं। मैं एक सामान्य सा व्यक्ति सीताराम पोसवाल यह सोच रहा हूं कि देश में संविधान के सबसे बड़े प्रतीकों में से हमारी संसद में यह कैसे कहा जा सकता है कि हिन्दू हिंसक है और चौबीस घंटे हिंसा के बारे में सोचता है। मेरे मन में चौबीस घंटे तक विलोड़न चलता रहा और सोचता रहा कि क्या जवाब दिया जाना चाहिए। परन्तु हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने इसका जवाब मात्र एक सम्बोधन से दे दिया है कि बच्चा बुद्धि।

इस एक शब्द के पीछे छिपे भावों में माननीय मोदीजी ने व्याख्या कर दी हिन्दुत्व के भावों की। क्षमा वीरस्य भूषणम्। पीएम का यह सम्बोधन भावों से भरने वाला है और यह सम्बोधन व्याख्या करता है जिसमें क्षमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उत्पात… का विष्णु का घट गयो जो भृगु मारी लात…। यानि कि यदि आप बड़े हैं तो मन भी बड़ा रखना होता है। यदि यही बेअदबी राहुल गांधी पाकिस्तान में करते या किसी अन्य धर्म की करते तो फतवा निकल आतां परन्तु यही हिन्दुत्व की महानता है कि आपको अभय मिलता है…, आपको विरोध के बावजूद घृणा अथवा नफरत नहीं सहनी पड़ती।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रतिपक्ष के नेता होने के बावजूद एक व्यक्ति हिन्दुत्व को हिंसक कह रहा है और उनके चेले—चपाटी और चाटुकार सुन रहे हैं। हिन्दुत्व की व्याख्या वही नहीं होगी जो कोई विधर्मी कह रहा है। उसके लिए हिन्दुत्व को जीना होगा। राहुल गांधी जिनके पिता जन्मत: पारसी हैं। जिनकी मां ईसाई हैं। वह जन्म से हिन्दू तो नहीं हुए। क्या उन्होंने हिन्दुत्व वह हिन्दू धर्म जिसके आराध्य पुरुष भगवान श्रीकृष्ण भी कहते हैं कि परित्राणाय साधूनाम, विनाशाय स दुष्कृताम्…।

अर्थात अन्याय पर चुप मत बैठो। कोई गलत है तो उसका परित्राण करो। जैसा उन्होंने खुद किया महाभारत में। परन्तु कृष्ण अंत समय तक सबको मौका देते हैं। शिशुपाल का वध करने के लिए भी उन्होंने सौ गालियां सुनी। दुर्योधन को समझाने के लिए कितने यत्न किए? सबको पता है।

मैं हमेशा से पढ़ता हूं कि भारत का गौरवशाली इतिहास तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है। बहुतेरे उपदेश भी आधे—अधूरे बताए गए। हमें अक्सर सिखाया गया कि अहिंसा परमो धर्मः यानि कि अहिंसा ही मनुष्य का परम धर्म है। जबकि, पूरा श्लोक तो है कि अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च:। इसका अर्थ है कि अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है और यदि धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करनी पड़े तो वह उससे भी श्रेष्ठ है। परन्तु इसके बावजूद हिन्दू हिंसा नहीं करता। वह तो मूक प्राणियों तक के लिए अपने शरीर का मांस काटकर दे देता है। शिवि और दिलिप का उदाहरण हमारे सामने हैं।

बाद में यह बोला जाता रहा कि आरएसएस और बीजेपी के लोगों के लिए यह कहा जा रहा है। तो जनाब भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भारत में हिन्दुत्व के सबसे बड़े प्रतीक है। ये नाम अक्सर ही साथ-साथ सुने जाते हैं। इनके बीच का रिश्ता बहुत ही सुन्दर और बहुआयामी है, जिसे समझना ज़रूरी है।

हिन्दुत्व सामान्य तत्व नहीं है

हिन्दुत्व कोई एक सामान्य तत्व नहीं है, जिसे राजनीतिक आरोप—प्रत्यारोप के लिए कभी भी, कोई भी, कैसे भी व्याख्यित कर दे। वह भी ऐसा व्यक्ति, जिसने हिन्दुत्व जीया नहीं हो। ऐसा व्यक्ति जो राजनीति करने के वक्त में मांसाहारी रेसीपीज पर लोगों का वक्त बर्बाद करता हो और सृजनात्मक लोकतांत्रिक सम्बोधन की जगह हिन्दुत्व जैसी महान विचारधारा को अपशब्द कहता हो। हिन्दुत्व एक महान विचारधारा है जो हिन्दू धर्म और संस्कृति को अखण्ड भारतवर्ष की राष्ट्रीय पहचान के केंद्र में रखती है। यह स्पष्ट धारणा है कि भारत मूल रूप से एक हिन्दू राष्ट्र है, और वह यहां रहने वाले सभी लोगों को, चाहे उनकी जाति, धर्म या पंथ या सम्प्रदाय कुछ भी हो, हिन्दू संस्कृति और उसके मूल्यों को अपनाना चाहिए। यह संस्कृति सभी काो सम्मान—आदर और समानता का भाव देती है।

हिन्दू कौन है?

हिन्दू शब्द का एक अर्थ निकाल पाना संभव नहीं है। यह तो चंदन जैसी खुशबू है जो मन को निर्मल, चित्त को शांत और आत्मा को तृप्त करती है। “वेदों का अनुयायी” हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है। इसमें भले ही अनेक सम्प्रदाय, दर्शन और रीति-रिवाज हों यह एक दूसरे का सम्मान करते हैं और एक दूसरे की विचारधारा को नकारते नहीं। हिन्दू धर्म में ईश्वर की कई सारी अवधारणाएं हैं, और पूजा-पाठ के अनेक तरीके हैं, लेकिन क्या राहुल गांधी इसे समझते हैं। या उनके पूर्वज जो एक्सीडेंटल हिन्दू जैसे शब्द गढ़ते थे, वे समझते रहे होंगे।

वजह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से नफरत

मैं बीते तीन दिन से सोच रहा था कि ऐसा क्यों किया जा रहा है। वह भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक सदन में। वजह है इनकी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से नफरत। संघ ने कभी भी किसी धर्म—जाति—सम्प्रदाय—पंथ—पार्टी अथवा विचारधारा का विरोध नहीं किया। वह सबको साथ लेकर चलने वाला दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। यह अपनी स्थापना के शतक वर्ष में है। सौ वर्ष की वर्षगांठ मना रहे इस संगठन जिसका उद्देश्य एक मजबूत और एकजुट भारत का निर्माण करना है, जो हिन्दू संस्कृति और मूल्यों पर आधारित हो। आरएसएस हिन्दुत्व विचारधारा का एक प्रमुख समर्थक रहा है। यह बात इनको हमेशा से चुभती रही है। आरएसएस का स्पष्ट तौर पर यह मानना है कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है, और हिन्दू संस्कृति तथा मूल्य देश की रक्षा और समृद्धि के लिए एक आवश्यक तत्व है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने हिन्दू समाज को संगठित करने और हिन्दू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में निश्चित तौर पर सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

विष वमन अकारण नहीं

परन्तु इसके बावजूद इन लोगों का यह विष वमन अकारण नहीं है। देश में बीते दस साल से लगातार इसी विचारधारा की सरकार। यह सरकार बंदूक के दम पर नहीं, बल्कि जनादेश पर बनी सरकार है। यह सरकार दमन करने के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण के लिए संकल्पित सरकार है। ऐसे में जनादेश से विचलित यह लोग हिन्दुत्व विचारधारा को साम्प्रदायिक और विभाजनकारी बताते हैं। यह खिसियाहट में खंभा नोचने जैसा है। वह भी उस व्यक्ति द्वारा जिसने हिन्दु धर्म को समझा और आत्मार्पित ही नहीं किया। यह धर्म तो माथे पर लगाए गए चंदन जैसा सुवासित है जो हमारे पूरे अंतरमन को अनूठे अहसास से भर देता है और दुनिया में खुशबू फैलाता है। चंदन खुद मिटकर ही अपनी खुशबू को अमर करता है, ऐसा ही है हिन्दू धर्म।

आरएसएस पर हिंसा और धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने का आरोप लगाते वक्त ये लोग भूल जाते हैं कि इनके खुद के हाथ सबसे अधिक साम्प्रदायिक हिंसा से रंगे हुए हैं। 1947 में भारत विभाजन के लिए कौन जिम्मेदार थे। भारत के सनातनियों को विभाजन के नाम पर किस तरह काटा गया। 1948 में कश्मीर वाला मामला। कश्मीर को भारत से अलग करने वाले कौन? 7 नवंबर 1966 को लाखों साधुओं पर गोली चलाने वाले लोग कौन थे। वहां तो साधु-संतों की मांग इतनी सी थी कि केंद्र सरकार पूरे देश में गौहत्या रोकने के लिए क़ानून बनाए। सर्वदलीय गौ रक्षा महाअभियान समिति के आंदोलन में वाराणसी के स्वामी करपात्री और हरियाणा से जनसंघ के सांसद स्वामी रामेश्वरानंद के अभियान को किसने ठेस पहुंचाई। यही नहीं 1975 में इमरजेंसी लगाकर किस पर अत्याचार किए गए।

चुन—चुनकर हिन्दुत्व विचारधारा ही निशाना बनाई गई। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को बैन कर दिया गया। हिन्दुत्व का समर्थन करने वाली तमाम पार्टियों के नेताओं को जेल में डाला गया। आज भी इन लोगों के कारण कश्मीरी पंडितों की स्थिति किसी से छिपी नहीं। यही नहीं 1984 में सिखों का नरसंहार कौन भूल सकता है? जनता लगातार नकार रही है। जनादेश में ये ठेंगा पा रहे हैं। राज्यों से सरकारें विदा हो रही है। झूठ और बदनाम करने का प्रचार इनकी रग—रग में है। अब इन्होंने हिन्दुत्व को बदनाम करने की साजिश रची। यदि एक बालक बुद्धि यह कोशिश करता भी है और उसके समर्थक चेले चपाटी पीछे डफली बजा रहे हैं।

कांग्रेस की ऐसी गत होनी ही थी, क्योंकि यह पार्टी हमेशा से हिन्दुत्व और हिन्दू विचारधारा की विरोधी रही है। मैं आज भी सोचता हूं कि यह पूर्व जन्म के सदकर्मों का ही नतीजा है कि हमें यह जन्म एक हिन्दू के रूप में मिला। कई बार ऐसे लोगों के लिए लिए गुस्सा भी आता है, लेकिन मेरा धर्म ही मुझे रोकता है। यह धर्म और इसकी हिन्दुत्व वाली विचारधारा जिसने कई युवा राजनेताओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। यह खटक रहे हैं कांग्रेस की नजरों में। आज कांग्रेस बीजेपी से लड़ तो पा नहीं रही और हिन्दुत्व से लड़ने का सपना देख रही है। यह तो बालक बुद्धि ही है।

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इसलिए इन सब बातों को दोहराने के बावजूद वह एक शब्द इस बात पर भारी है बच्चाबुद्धि! यही हिन्दुत्व है, जिसमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नायक आपको बालक समझकर माफ कर देता है। परन्तु उम्मीद है कि आप आगे से यह बचपना नहीं करेंगे। हिन्दुत्व को मिटाने के लिए सैकड़ों—हजारों सालों की साजिशें नाकाम हुई हैं आगे भी होती रहेंगी। वह चाहे चंगेज खां हों, तैमूर, बाबर, अकबर, औरंगजेब, अंग्रेज या कांग्रेस कोई भी आए! सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा। हिन्दी है हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा…। आपको आपकी नफरत मुबारक…!

मुझे व्यक्तिगत तौर पर यह लगता है आरएसएस अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। इसलिए इस संगठन को बदनाम करने की साजिश में यह कोशिश हुई है। जब आरएसएस अपना 50 साल पूरे कर चुका। तब इन्होंने ही इस संगठन को बैन किया था। अंतरराष्ट्रीय फलक पर खुद के लिए सहानुभूति हासिल करने की कोशिश और हिन्दुत्व को बदनाम करने के प्रयास के अलावा इनका यह रुदन और कुछ नहीं है।

यह व्यक्ति पहले ओबीसी वर्ग के लोगों को चोर बताने के मामले में सज़ा पा चुका। देश की सर्वोच्च अदालत पर सुप्रीम कोर्ट पर भी गैर-जिम्मेदाराना बयान देने के बाद माफ़ी माँग चुका। जो कभी गले पड़ जाता हो, आंख मारता हो। जिस पर वीर सावरकर जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी के अपमान का भी मुकदमा चल रहा है। वह हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म को क्या समझेगा। तुम तो रहने ही दो… तुमसे ना हो पाएगा राहुल…

— –सीताराम पोसवाल की कलम से…


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