Opposition's Evasion Can They Ever Think of Gaining Power?
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चर्चा से भागता और अपनी भूमिका नहीं निभा पा रहा विपक्ष सत्ता की सोच भी कैसे सकता है


केन्द्रीय बजट के प्रावधानों पर चर्चा से विपक्ष डर जाए और चर्चा नहीं होने दे तो यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।

बजट पर आज विपक्ष ने वाकआउट कर दिया। देश में लगातार सातवीं बार बजट पेश करने वाली यशस्वी वित्तमंत्री को जिस तरह से तंज कसते हुए विपक्ष ने वाकआउट किया। वह बड़ा ही विचलित करने वाला है। देश की जनता को सोचना चाहिए कि जो लोग विपक्ष की भूमिका भी नहीं निभा पा रहे। क्या वह इतने बड़े, महान और संस्कृति से पोषित राष्ट्र की सत्ता सौंपे जाने लायक है।

2001 का बजट जब महान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयीजी की सरकार के वक्त पेश किया गया तो वित्त मंत्री ने कहा था कि तकाजा है वक्त का कि तूफान से जूझो, कहां तक चलोगे किनारे-किनारे? इसके बीस साल बाद भी जब भाजपा की सरकार थी और कोविड का दौर था तो यह देश किस तरह इस संकट से निकला। किसी से छिपा नहीं और फाइव ट्रिलियन इकॉनोमी की राह पर बढ़ रहे भारत में विपक्ष ही देश की उन्नति का विरोधी बना हुआ है।

मैं गलत नहीं कहूंगा कि विपक्ष के लोग अपने आपको विपक्षी नहीं मानकर विरोधी मानते हैं। विपक्ष का काम आलोचना करना होता है, जबकि मौजूदा विपक्ष इतना कुंठित नजर आता है कि वह विरोध पर ही उतर आया है। करों का संग्रहण सत्ता का अधिकार है और उसी आधार पर वह जन कल्याण के लिए धर्म की व्यवस्था करता है। परन्तु लगता है कि मौजूदा विपक्ष के लोग तथाकथित मोहब्बत की दुकान में नफरत का विष वमन करने के लिए ही बैठे हैं।

आज जिस तरह से राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेताओं ने शब्द इस्तेमाल किए। उन्होंने मेरे मन को खट्टा कर दिया। लेकिन जिस अंदाज में हमारी आदरणीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमणजी ने जवाब दिया। वह स्तुति योग्य है। सीधे तौर पर आदरणीय वित्त मंत्री ने दर्शा दिया कि कमजोर और कुंठित विपक्ष के बावजूद देश किन्हीं कमजोर हाथों में नहीं है।

विश्वनेता के तौर पर दुनिया में ख्यात हमारे आदरणीय यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी ने कहा भी “2024—25 का पूर्णकालिक आम बजट समाज के प्रत्येक वर्ग को शक्ति देने वाला बजट है। ये भारत के गांव-गरीब-किसान को समृद्धि की राह पर ले जाएगा। पिछले दस वर्षों में पच्चीस करोड़ लोग गरीबी की रेखा से बाहर निकले हैं। पीएम मोदी जी ने कहा कि यह बजट नीयोमीडिल क्लास की सशक्तिकरण की निरंतरता का बजट है। ये बजट नौजवानों को अनगिनत नए अवसर प्रदान करने वाला बजट है।

इस आम बजट से देश में शिक्षा और स्किल को नई स्केल मिलेगी। ये बजट मध्यम वर्ग को नई ताकत प्रदान करने वाला बजट है। यह बजट जनजातीय समाज, दलित और पिछड़ों को सशक्त करने की योजनाओं के साथ आया है। इस बजट से हमारे देश की महिलाओं की आर्थिक भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। इस बजट से छोटे व्यापारियों MSMEs को प्रगति का नई राह मिल सकेगी। बजट में मैन्यूफैक्चरिंग के उपाय किए गए हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर पर बल दिया गया है। इससे हमारे देश भारत के आर्थिक विकास को निश्चित ही एक नई गति मिलेगी और इस गति को भी सतत निरंतरता मिलेगी।”

इन सबके बावजूद ये लोग कह रहे हैं कि कर्ज लेने और करों के भार को बढ़ाने का यह काम किया गया है। जबकि हमारे देश के महान महाकाव्य महाभारत में करों के लिए कहा गया है कि

दापयित्वाकरंधर्म्यंराष्ट्रंनित्यंयथाविधि।
अशेषान्कल्पयेद्राजायोगक्षेमानतन्द्रितः॥११॥

अर्थात शासक को बिना ढिलाई धर्मानुरूप कर संग्रहण करने के साथ-साथ, राजधर्म का पालन करते हुए शासन करके लोगों के कल्याण के लिए अवश्य व्यवस्थाएं करनी चाहिए। यही व्यवस्थाएं तो आदरणीय मोदीजी की सरकार कर रही है जो सत्ता की आकांक्षा में विरोधी बनकर बैठे विपक्ष को नजर नहीं आ रही।

रघुवंश में कालिदासजी ने लिखा है

प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलिमग्रहीत् ।
सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते हि रसं रवि:॥

अर्थात जैसे सूर्य हजार गुना पानी बरसाने के लिए भी पृथ्वी से जल का बहुत कम हिस्सा लेता है। वैसे ही सूर्यवंशी राजा अपनी प्रजा के हित के लिए ही प्रजा से अल्प मात्रा में कर लिया करते थे।

तो करों का प्रावधान करते हुए सरकार ने आम आदमी पर बोझ नहीं डाला है और आम आदमी को राहत देने के लिए योजनाओं का पिटारा खोला है। विपक्ष के लोग मुश्किलों का जिक्र कर रहे हैं लेकिन मुझे स्वर्गीय अरुण जेटली जी की पंक्तियां याद आती हैं…। जब उन्होंने 2017 का बजट भाषण पढ़ा था।

कश्ती चलाने वालों ने, जब भी हार कर दी पतवार हमें,
लहर—लहर, तूफान मिले और मौज-मौज मझधार हमें।
फिर भी दिखाया हमने और फिर से दिखा देंगे ये सबको,
इन हालातों में भी आता है दरिया को करना पार हमें।।

देश किन हालात में माननीय मोदीजी को मिला और देश आज दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर है। यह समर्पण और मेहनत का ही नतीजा है जो बीते दस साल से लगातार हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री और उनकी टीम कर रही है। कोविड जैसी भयंकर महामारी के बावजूद भारत आज भी मजबूती से खड़ा है, जबकि दुनिया के कई देश आज अपनी आर्थिक ताकत को गंवा बैठे हैं।

फ्रांस के प्रसिद्ध लेखक विक्टर ह्यूगो का कहना है धरती की कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ चुका है। अब मोदी युग शुरू हो चुका है।

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इस युग को क्षुद्र कोशिशों से बदलने की उत्कंठा वामपंथी नेताओं में साफ नजर आती है।

हमारे देश का युवा, महिला, किसान, दलित—दमित—शोषित, पिछड़ा और वंचित वर्ग भारत को आर्थिक महाशक्ति और विश्वगुरू बनाने के लिहाज में रखे गए इस एक और कदम की सराहना करता है। एक व्यापारी होने के नाते मैं सीताराम पोसवाल खुद मानता हूं कि भारत अब अपने पैरों पर खड़ा होकर चलने लगा है और एक नई उज्ज्वल राह पूरी दुनिया को दिखाएगा।

यह बजट ​केवल आर्थिक प्रावधान मात्र नहीं है, करों का बोझ नहीं है। जनता की उम्मीदों को पूरा करने वाला बजट है। विपक्ष को विरोधी की भूमिका में रहने में आनंद आ रहा है, लेकिन हमारा देश आगे बढ़ता ही जा रहा है और बढ़ता रहेगा।

स्व. अरुण जेटलीजी यूनियन बजट 2017 में कह गए थे कि कुछ तो फूल खिलाए हमने, और कुछ फूल खिलाने हैं। मुश्किल ये है बाग़ में अब तक, कांटे कई पुराने हैं।

ऐसे में कई कांटे अभी भी हटाए जाने हैं और उम्मीद करते हैं कि यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी इन कांटों को हटाने के लिए शिद्दत से काम करते रहेंगे।

— सीताराम पोसवाल


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