India's Constitution
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भारत का संविधान: गौरव, उपलब्धि और एकता का प्रतीक


हमारे भारत का महान संविधान अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे कर चुका है और मुझ सीताराम पोसवाल को यह महसूस करते हुए गर्व की अनुभूति होती है कि इस विषय पर हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने इसकी यात्रा को एक अनूठा रूप प्रदान किया। हमारे प्रधानमंत्रीजी का लोकसभा में दिया गया सम्बोधन हमें मार्गदर्शित करता है कि संविधान के निर्माण और उसके आगे की यात्रा में भारत का संविधान किन चुनौतियों से जूझा, लेकिन आज भी अडिग, अटल और महान है। हमारा संविधान देशवासियों के लिए ही नहीं , विश्व के लोकतंत्र प्रेमी नागरिकों के लिए भी गौरव का विषय है। बड़े गर्व के साथ लोकतंत्र के उत्सव को मनाने का यह अवसर है।

संविधान के 75 वर्ष की यात्रा को यादगार ओर ऐतिहासिक बनाने में, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को सफ़ल बनाने में हमारे संविधान निर्माताओं की दूर दृष्टि ओर दूरगामी सोच ही रही है. यह 75 वर्ष पूर्ण होने पर एक उत्सव मनाने का पल है। यह केवल एक ऐतिहासिक पड़ाव नहीं, बल्कि हमारी लोकतांत्रिक परंपरा, समर्पण और संविधान निर्माताओं की दिव्य दृष्टि का उत्सव है। इस अवसर पर, हम अपने संविधान निर्माताओं और देश के करोड़ों नागरिकों को नमन करते हैं, जिन्होंने इस अद्वितीय दस्तावेज़ को जीवंत किया और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाया।

संविधान की 75 वर्षों की यात्रा: असाधारण उपलब्धियां

हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी बताते हैं कि आजादी के समय भारत के भविष्य को लेकर कई संदेह और आशंकाएं व्यक्त की गई थीं। लेकिन हमारा संविधान इन सभी शंकाओं को परास्त करते हुए देश को प्रगति और स्थिरता के पथ पर ले गया। इस यात्रा में, भारत ने न केवल अपनी लोकतांत्रिक परंपरा को मजबूत किया, बल्कि विविधता में एकता के आदर्श को भी साकार किया। संविधान निर्माता इस बात से भली-भांति परिचित थे कि भारत केवल 1947 में नहीं बना; हमारी लोकतांत्रिक परंपरा और सांस्कृतिक विरासत हजारों वर्षों पुरानी है।

भारत ही लोकतंत्र की जननी

भारत का गणतांत्रिक अतीत हमेशा से समृद्ध और प्रेरणादायक रहा है। यही कारण है कि आज भारत को “लोकतंत्र की जननी” कहा जाता है। हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत की प्राचीन परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों को आधुनिक लोकतंत्र में पिरोया। इस संदर्भ में, संविधान सभा में राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉ. भीमराव अंबेडकर जैसे महान व्यक्तित्वों के विचार हमारे लिए प्रेरणा स्रोत हैं। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था का स्वरूप प्राचीन काल से यहां के गणराज्यों में परिलक्षित होता है.

संविधान निर्माण में नारी शक्ति का योगदान

संविधान निर्माण में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संविधान सभा में 15 महिला सदस्यों ने सक्रिय रूप से योगदान दिया और मौलिक चिंतन के माध्यम से संविधान को समृद्ध किया। यह गर्व का विषय है कि जब विश्व के कई देशों में महिलाओं को उनके अधिकार देने में दशकों लग गए, भारत ने उन्हें शुरुआत से ही मताधिकार प्रदान किया। साथ ही महिला कल्याण की मूल भावना के अनुरूप नारी शक्ति की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के लिए संसद और राज्य विधायिका में महिलाओं के लिए 33% रिजर्वेशन का बिल पारित करवाया है।

नारी सशक्तिकरण की दिशा में प्रगति

संविधान की भावना को आगे बढ़ाते हुए भारत ने नारी सशक्तिकरण की दिशा में कई पहल की हैं। जी-20 अध्यक्षता के दौरान, “वीमेन लेड डेवलपमेंट” का विचार विश्व मंच पर प्रस्तुत किया गया। नारी शक्ति वंदन अधिनियम के माध्यम से महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना, महिला सांसदों की बढ़ती संख्या, और राष्ट्रपति पद पर एक आदिवासी महिला की नियुक्ति, संविधान की सशक्त भावना का प्रतीक हैं।

भारत का संविधान: एकता का आधार

भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखना संविधान की सबसे बड़ी उपलब्धि है। यह एकता विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों के बीच सामंजस्य स्थापित करती है। बाबा साहब अंबेडकर ने संविधान निर्माण के समय देश की विविधता को एकता में पिरोने की आवश्यकता पर बल दिया था। इसके मूल अधिकार पूरी दुनिया में इसे अनूठा और विशिष्ट बनाते हैं। समानता के अधिकार वाली संविधान की इसी भावना को साकार करते हुए, अनुच्छेद 370 को हटाना, “वन नेशन, वन राशन कार्ड,” और “वन नेशन, वन हेल्थ कार्ड” जैसी नीतियों का कार्यान्वयन किया गया। मौजूदा प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदीजी के नेतृत्व में हमारे देश की महान सरकार इस दिशा में अब वन नेशन वन इलेक्शन और एक देश एक कानून की संकल्पना को साकार रूप देने में आगे बढ़ रही है।

संविधान और विकास: भारत की प्रगति

भारत तेज़ी से विकास की राह पर अग्रसर है। आज, हमारा देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में बढ़ रहा है। यह उपलब्धि संविधान की मार्गदर्शक शक्ति के बिना संभव नहीं थी। न्यू एजुकेशन पॉलिसी के तहत मातृभाषा में शिक्षा की पहल, इन्फ्रास्ट्रक्चर के संतुलित विकास, और “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” अभियान जैसे प्रयास संविधान की भावना को मजबूत करते हैं।

संविधान दिवस और लोकतांत्रिक परंपरा का सम्मान

संविधान दिवस का महत्व केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि लोकतंत्र और राष्ट्रीय एकता का उत्सव है। जब 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की शुरुआत की गई, तो इसकी भावना को सभी ने महसूस किया। यह एक ऐसा अवसर है जब हम संविधान के प्रति अपनी निष्ठा और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

संविधान के प्रति मेरी कृतज्ञता

एक गांव में पैदा हुआ सीताराम पोसवाल व्यक्तिगत रूप से, इस संविधान के प्रति कृतज्ञ है। यह कहते हुए गला भर आता है कि यही वह संविधान है जिसने मेरे जैसे साधारण पृष्ठभूमि के व्यक्ति को यहां तक पहुंचने का अवसर दिया। संविधान ने न केवल मुझे, बल्कि मुझ जैसे राजस्थान के सैकड़ों ही नहीं बल्कि करोड़ों लोगों को समान अवसर प्रदान किए और वे आगे बढ़ सके।

संविधान की रक्षा और कांग्रेस का पाप

संविधान की 75 वर्षों की यात्रा में, कुछ क्षण ऐसे भी आए जब इसकी गरिमा को ठेस पहुंचाई गई। आपातकाल का दौर संविधान का सबसे काला अध्याय था। नागरिकों के अधिकार छीन लिए गए, प्रेस की स्वतंत्रता को दबाया गया, और लोकतंत्र को कुचलने का प्रयास किया गया। यह कांग्रेस की मानसिकता को दर्शाता है, जिसने बार-बार संविधान की अवहेलना की। संविधान की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। बाबा साहब अंबेडकर के प्रति कांग्रेस का रवैया भी हमेशा द्वेषपूर्ण रहा। लेकिन हमारी सरकार ने उनकी स्मृतियों को संजोने और सम्मानित करने का कार्य किया।

आरक्षण और सामाजिक न्याय

आरक्षण का प्रावधान बाबा साहब अंबेडकर की दूरदर्शिता का परिणाम था। यह वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने का साधन है। लेकिन कांग्रेस ने बार-बार आरक्षण का विरोध किया और इसे कमजोर करने का प्रयास किया। हमारी सरकार ने इस अधिकार को संरक्षित किया और इसे मजबूती दी।

संविधान के 75 वर्षों का उत्सव

संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर यह हमारा दायित्व है कि हम इसकी भावना को समझें, इसे जीएं, और आने वाली पीढ़ियों को इसके महत्व से अवगत कराएं। संविधान की रक्षा और इसके मूल्यों को बनाए रखना हर भारतीय का कर्तव्य है।

संविधान एक किताब भर नहीं, हमारी प्रेरणा है

मैं सीताराम पोसवाल शपथपूर्वक यह कहता हूं कि भारत का संविधान केवल एक किताब या दस्तावेज़ नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और एकता का प्रतीक है। यह हमें एक बेहतर समाज और देश बनाने की प्रेरणा देता है। आइए, इस संविधान दिवस पर हम सब मिलकर संविधान के आदर्शों को अपने जीवन में उतारें और भारत को एक विकसित, सशक्त और अखंड भारत बनाएं।

जय हिंद!

सीताराम पोसवाल

ओबीसी मोर्चा, प्रदेश उपाध्यक्ष, भाजपा


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