भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर में प्रयागराज महाकुंभ का विशेष स्थान है। यह न केवल आस्था का महापर्व है, बल्कि भारतीय संस्कृति, धर्म और सनातन परंपरा का जीवंत प्रतीक भी है। वर्ष 2025 में आयोजित महाकुंभ का एक प्रमुख आकर्षण रहा मौनी अमावस्या का पर्व, जिस दिन करोड़ों श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान कर स्वयं को धन्य किया। मुझे, सीताराम पोसवाल को भी इस पावन अवसर पर संगम घाट पर स्नान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस अलौकिक अनुभव को शब्दों में बाँधना कठिन है, फिर भी मैं अपने भावों को साझा करने का प्रयास कर रहा हूँ।
मौनी अमावस्या का महत्व
मौनी अमावस्या सनातन धर्म में एक विशेष स्थान रखती है। यह दिन आत्मचिंतन, मौन और ध्यान का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन संगम में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि इस अवसर पर देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु प्रयागराज पहुँचते हैं।
संगम घाट पर दिव्य अनुभव
जैसे ही मैं प्रयागराज पहुँचा, चारों ओर भक्तों की आस्था और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिला। संगम घाट की ओर बढ़ते हुए मैंने भक्तों के भजन-कीर्तन की ध्वनि सुनी, जिससे वातावरण और अधिक आध्यात्मिक हो गया।
संगम तट पर पहुँचकर मैंने देखा कि दूर-दूर तक अपार जनसैलाब उमड़ा हुआ था। सनातन परंपरा के अनुसार, साधु-संत, नागा संन्यासी और भक्तजन गंगा मैया में डुबकी लगा रहे थे। मेरी भी उत्कंठा बढ़ गई और मैंने श्रद्धा से स्नान का संकल्प लिया। जैसे ही मैंने पावन जल में प्रथम डुबकी लगाई, एक अद्भुत ऊर्जा का संचार हुआ। ऐसा लगा मानो समस्त तनाव जल में विलीन हो गया हो।
स्नान का आध्यात्मिक प्रभाव
जैसे-जैसे मैं जल में दूसरी और तीसरी डुबकी लगाता गया, मेरे भीतर एक असीम शांति का अनुभव हुआ। ऐसा लगा जैसे आत्मा को निर्मलता का नया अहसास हो रहा हो। मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर आत्मचिंतन करने की परंपरा का पालन करते हुए मैंने अपनी अंतरात्मा को ईश्वर के चरणों में समर्पित किया।
संगम पर स्नान करने के बाद मैंने घाट पर ही पूजन-अर्चना की और भगवान श्री हरि, माता गंगा और सभी देवी-देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त किया। वहाँ उपस्थित विद्वान पंडितों ने इस दिन के महत्व को समझाया और बताया कि यह स्नान केवल शारीरिक शुद्धि ही नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।
महाकुंभ का अलौकिक दृश्य
महाकुंभ में संत महात्माओं के प्रवचन, भजन-कीर्तन और भव्य झाँकियाँ देखते ही बन रही थीं। नागा संन्यासियों की पेशवाई एक अनोखा आकर्षण था। वे अपने शस्त्रों और अनुशासनबद्ध जीवनशैली के साथ सनातन धर्म की परंपरा को जीवंत बनाए हुए थे। अखाड़ों के शिविरों में जाकर मैंने संत-महात्माओं से आध्यात्मिक चर्चाएँ कीं और उनके अनुभवों से बहुत कुछ सीखा।
भक्तों की श्रद्धा और समर्पण
महाकुंभ के दौरान भक्तों का उत्साह देखने योग्य था। हर कोई अपने-अपने तरीके से भगवान की आराधना में लीन था। कहीं हर-हर महादेव के जयकारे गूँज रहे थे तो कहीं गंगा आरती का भव्य दृश्य मन को मोह लेने वाला था।
व्यवस्था और सुरक्षा
महाकुंभ जैसे भव्य आयोजन में सरकार और प्रशासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इस वर्ष प्रयागराज महाकुंभ 2025 की व्यवस्थाएँ अत्यंत सराहनीय थीं। संगम क्षेत्र में साफ-सफाई, यातायात नियंत्रण, सुरक्षा व्यवस्था और चिकित्सा सुविधाएँ चाक-चौबंद थीं। स्नान घाटों पर अनुशासन बनाए रखने के लिए पुलिस प्रशासन और स्वयंसेवी संगठन तत्पर थे। आदरणीय योगी आदित्यनाथजी की सरकार का यह शानदार व्यवस्थाओं वाला सेटअप पूरी दुनिया को एक मिसाल के रूप में लेना चाहिए। किस तरह से दुनिया के सबसे बड़े मेले का प्रबंधन होता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं का जीता-जागता स्वरूप है। यहाँ विभिन्न राज्यों और देशों से आए श्रद्धालु भारतीय संस्कृति की विविधता को दर्शाते हैं। यह एक ऐसा अवसर होता है जब आध्यात्मिक ऊर्जा और धार्मिक आस्था का संगम होता है।
महाकुंभ से जीवन को मिली नई दिशा
मौनी अमावस्या के पावन स्नान के बाद मैंने महसूस किया कि जीवन के प्रति मेरा दृष्टिकोण और अधिक सकारात्मक हो गया है। इस अलौकिक अनुभव ने मुझे आत्मचिंतन करने, जीवन को सरल बनाने और धर्म व आध्यात्मिकता को अपने दैनिक जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी।
प्रयागराज महाकुंभ 2025 में मौनी अमावस्या पर संगम स्नान का अनुभव अत्यंत अद्भुत और अविस्मरणीय रहा। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उत्थान का अवसर था। इस यात्रा ने मुझे यह सिखाया कि सनातन धर्म की परंपराएँ न केवल आस्था से जुड़ी हैं, बल्कि वे हमें एक श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा भी देती हैं।
मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि हर किसी को यह दिव्य अनुभव प्राप्त हो और हमारी संस्कृति एवं परंपराएँ युगों-युगों तक जीवित रहें। हर हर गंगे! जय महाकुंभ!
ओबीसी मोर्चा, प्रदेश उपाध्यक्ष, भाजपा
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