Maha kumbh 2025
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महाकुंभ 2025: इतिहास, रहस्य और परंपरा की अद्भुत गाथा, 144 साल बाद आया यह सुअवसर


भारत की पुण्य भूमि और सनातन संस्कृति से ओतप्रोत जीवन! मैं अक्सर सोचता हूं कि सीताराम पोसवाल! तुम्हारे लिए यह एक ईश्वरीय वरदान और कृपा से पूरित आशीर्वाद ही है कि जीवन में श्रेष्ठ अवसर मिलते ही जा रहे हैं। एक और श्रेष्ठ अवसर महाकुंभ का हमारे जीवन काल में आना है। यह अवसर कम से कम सात पीढ़ियों में एक ही व्यक्ति को मिल पाता है कि वह 144 साल के अंतराल में आने वाले महाकुंभ का दर्शन कर पाता है। मैं सीताराम पोसवाल अपने आपको धन्यभाग समझता हूं कि सनातन संस्कृति का हिस्सा हूं और यह ईश्वरीय कृपा हमारे पर बरसी है।

मित्रों! महाकुंभ, भारत की महान संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक प्रतीक, 2025 में पुनः प्रयागराज में आयोजित होने जा रहा है। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत की समृद्ध परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने वाला एक अद्वितीय अवसर भी है। 144 वर्षों बाद यह महान आयोजन होने जा रहा है, और इस बार इस मेले में करीब 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। यह आयोजन न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय संस्कृति, एकता और भक्ति का जीवंत प्रतीक भी है।

कुंभ मेला, भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, जो हर बार 12 वर्षों के अंतराल पर चार प्रमुख स्थानों—हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। इन स्थानों का चयन पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक संदर्भों पर आधारित है, और ये स्थल भारतीय सभ्यता के प्रारंभिक काल से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक कुंभ मेला एक अद्वितीय धार्मिक अनुभव प्रदान करता है, जो पूरे विश्व में अपनी विशिष्टता और महत्ता के कारण प्रसिद्ध है।

अक्सर हम बचपन में सुनते रहे कि कुंभ मेला का इतिहास प्राचीन पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। इन कथाओं में गरुड़ और अमृत कलश की कथा प्रमुख है। गरुड़ ने भगवान विष्णु के आदेश पर अमृत कलश को लाने के लिए समुद्र मंथन किया, और इसके दौरान अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं—हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक, जिन्हें अब कुंभ मेला के आयोजन स्थल के रूप में माना जाता है। इस रहस्यमय घटना ने इन स्थानों को पवित्र और विशेष बना दिया, और तभी से इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
प्रयागराज का त्रिवेणी संगम: आस्था का केंद्र

भारत का महान स्थल प्रयागराज, जिसे त्रिवेणी संगम के रूप में जाना जाता है, कुंभ मेले का मुख्य स्थल है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती (अदृश्य) नदियों का संगम है, और इसे मोक्ष प्राप्ति का स्थान माना जाता है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी इसे अत्यधिक सम्मान प्राप्त है। प्रयागराज का यह संगम स्थल भारत की आस्था और आध्यात्मिकता का प्रतीक बन चुका है, जहां प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु स्नान के लिए आते हैं।

महाकुंभ 2025: एक भव्य आयोजन

भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के मार्गदर्शन और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदरणीय योगी आदित्यनाथजी के नेतृत्व में महाकुंभ 2025 का आयोजन पूरी दुनिया के सामने एक महान संदेश देने जा रहा है। 2025 का महाकुंभ, अपनी भव्यता और उत्कृष्ट प्रबंधन के लिए भी अत्यधिक चर्चित होने वाला है। इस महाकुंभ में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना है, और इसे एक ऐतिहासिक रूप में मनाया जाएगा। जल प्रबंधन, यातायात, सुरक्षा और स्वच्छता के विशेष प्रबंध किए गए हैं ताकि यह आयोजन सफलता से संपन्न हो सके। इस आयोजन के लिए 6382 करोड़ रुपये का अनुमानित बजट रखा गया है, जो इसके महत्व को और भी बढ़ाता है। इस आयोजन को लेकर भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने अनेक पहल की हैं, जिनसे न केवल धार्मिक आस्था को बल मिलेगा, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रचार भी होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का नेतृत्व इस आयोजन को ऐतिहासिक और अभूतपूर्व बना रहा है।

सनातन के प्रति समर्पण और श्रद्धा

मैं सीताराम पोसवाल स्पष्ट रूप से यह मानता हूं कि भारत में महाकुंभ का आयोजन सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह सनातन संस्कृति, आस्था और परंपराओं के प्रति हमारी श्रद्धा का प्रतीक है। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और हमें अपने पवित्र धर्म, संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने की प्रेरणा देता है। इस आयोजन में भाग लेने से एक व्यक्ति की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है, और यह हमारी सामूहिक आस्था का प्रतीक है। जैसे हर एक बूँद का समुद्र में मिलकर एक अद्भुत रूप लेता है, वैसे ही कुंभ मेला भी लाखों श्रद्धालुओं को एकजुट करता है और एक विशाल भक्ति रूपी महासागर का निर्माण करता है।

महाकुंभ 2025 और भारतीय संस्कृति का भविष्य

यह भी स्पष्ट संदेश है कि महाकुंभ भारतीय संस्कृति के भविष्य की दिशा का भी निर्धारण करेगा। इस महाकुंभ के आयोजन से न केवल भारतीय संस्कृति और धार्मिकता को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान मिलेगी, बल्कि यह भारतीय समाज में एकता, भाईचारे और समरसता का संदेश भी फैलाएगा। यह आयोजन समाज के हर वर्ग को एकजुट करने का कार्य करेगा, और हर व्यक्ति को अपने अंदर की भक्ति और श्रद्धा को पुनः जागृत करने का अवसर प्रदान करेगा। हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के भारत को विश्वगुरू बनाने के संकल्प को सिद्धि की ओर ले जाएगा।

कुंभ मेले का सांस्कृतिक महत्व

कुंभ मेला न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। इस मेले में देश भर से लोग आते हैं और यह विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और जातियों के बीच सामंजस्य स्थापित करने का काम करता है। कुंभ मेला भारतीय संस्कृति के महत्व को समझाने का एक बड़ा अवसर है, जो पूरी दुनिया को हमारी अद्भुत धरोहर से परिचित कराता है।

निश्चित तौर पर महाकुंभ 2025 एक ऐतिहासिक अवसर है जो हमें हमारी संस्कृति और परंपराओं को समझने, संजोने और आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करेगा। इस अवसर पर हम सभी को अपनी श्रद्धा और आस्था को प्रगाढ़ करने का संकल्प लेना चाहिए, ताकि हम सनातन धर्म की महानता और भारतीय संस्कृति की महिमा को पूरी दुनिया में फैलाने में अपनी भूमिका निभा सकें। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के मार्गदर्शन में यह महाकुंभ 2025 न केवल आस्था का बल्कि भारतीय परंपराओं, सभ्यता और संस्कृति का अडिग प्रतीक बनेगा।

सीताराम पोसवाल

ओबीसी मोर्चा, प्रदेश उपाध्यक्ष, भाजपा

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