Pioneer of Integral Humanism Legacy of Pandit Deendayal Upadhyay

एकात्म मानववाद के प्रणेता: पंडित दीनदयाल उपाध्यायजी


पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक ऐतिहासिक चरित्र का नाम मात्र नहीं है। यह एक विचार है जो आज करोड़ों भारतीयों के दिलों में पुष्पित और पल्लवित हो रहा है। एकात्म मानववाद जैसी महान विचारधारा के प्रस्तावक और निष्ठा व सिद्धान्त की राजनीति करने वाले भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के नेता के रूप में उनकी ख्याति पूरी दुनिया में आज चहुंदिश गूंज रही है। जनसंघ ही उपाध्यायजी का रोपा हुआ बीज था, जिससे आज की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पल्लवित हो रही है। दशकों तक सरकारों ने इस महानायक के इतिहास को सरकारों ने हाशिए पर रखा।

परन्तु अब देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके बताए मार्ग पर चलने वाली सरकारों ने बहुत सारी योजनाएं उपाध्यायजी के नाम पर उनके सम्मान में शुरू की और कई जगह पैनोरमा भी ​बनाए हैं। उनकी जयंती के अवसर पर मैं सीताराम पोसवाल बहुत ही विनम्र भावों से नमन करते हुए श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं। शब्द अंजलि प्रस्तुत करते हुए मेरे मन में विचार आता है कि कैसे ही महज 52 वर्ष की सशरीर आयु पाने वाले उपाध्यायजी ने हिंदुत्व पुनरुत्थान के आदर्शों को फैलाने के लिए 1940 के दशक में मासिक प्रकाशन राष्ट्र धर्म शुरू किया।

उन्हें आज से सौ साल पहले ज्ञात था कि ये रास्ते किस दिशा में जा रहे हैं और देश को दिशा कौनसी देनी है। न केवल जनसंघ के आधिकारिक राजनीतिक सिद्धांत, एकात्म मानववाद का मसौदा तैयार करने के लिए उपाध्यायजी को सदियों याद किया जाता रहेगा। बल्कि उन्हें सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद मूल्यों और कई समाजवादी सिद्धांतों जैसे सर्वोदय (सभी की प्रगति) और स्वदेशी (आत्मनिर्भरता) के साथ उनकी सहमति हमारे देश को आज भी रास्ता दिखाती है।

पंडित ​दीनदयाल उपाध्याय का बचपन

पं. दीनदयालजी का जन्म 25 सितंबर, 1916 को जयपुर-अजमेर रेलमार्ग के छोटे से स्टेशन नगला चंद्रभान गाँव में हुआ था। उनके माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था, जिसके बाद वे अपने मामा के यहाँ पले। पं. दीनदयाल जी बचपन से ही मेधावी और अध्ययनशील थे। उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा में बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। इसके बाद उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और एम.ए. की पढ़ाई के दौरान ही वे संघ कार्य में लग गए, जिससे आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए।

सन 1937 में उनका संघ से जुड़ाव हुआ और उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर दिया। वे एक कुशल लेखक भी थे और उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन किया। वे ‘पांचजन्य’ और ‘राष्ट्रधर्म’ जैसी पत्रिकाओं के संपादक रहे। सन 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना के बाद वे उसके प्रमुख नेता बने और संगठन को मजबूत किया। वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे और उनके नेतृत्व में संगठन ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल कीं।

दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से पंडितजी का चले जाना

बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों के स्वामी, पं. दीनदयाल उपाध्याय जी की हत्या सिर्फ 52 वर्ष की आयु में 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय के मथुरा रेलमार्ग में यात्रा करते समय हुई। उनका पार्थिव शरीर मुगलसराय स्टेशन के समीप पड़ा पाया गया। जानकारी के अभाववश प्रारंभ में कोई यह भी न पहचान सका कि यह महापुरुष भारतीय राष्ट्र जीवन की सेवा हेतु समर्पित उच्चकोटि के राजनैतिक विचारक तथा नेता पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का नश्वर शरीर था। अंत में किसी परिचित ने उनकी यह पहचान की। उनका शरीर भले ही कुछ क्षण पहले प्राणहीन हो चुका था परंतु उनका भावात्मक – शारीरिक – बौद्धिक तथा आध्यात्मिक स्वरूप आज भी यथावत हमारे मध्य प्रस्तुत है। वस्तुतः उनका जीवन भारतीय जनमानस के लिए प्रत्येक दृष्टि से प्रेरणादायक है।

गंभीर अध्येता थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय

राजनीतिक परिधि में उतरने के पूर्व पं. उपाध्याय जी ने अत्यंत गंभीरता पूर्वक अध्ययन किया और उसमें भी अंतिम प्रमाणिक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। राजनीति का तात्त्विक अध्ययन किया तथा इस दृष्टि से अपने राष्ट्रजीवन की दिशा को समझने का प्रयास किया। अंततः वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि राष्ट्रजीवन के संचालन के लिए भारतीयता के आधार पर चलने वाली विचारधारा ही श्रेष्ठ होगी। उनकी यह स्थिरधारा उनका जन्मजात संस्कार था। इसी से प्रेरणा पाकर उन्होंने राजनीति तथा समाजसेवा को कर्मक्षेत्र बनाकर अपना सर्वस्व समर्पण कर दिया।

किसी ने उनके समक्ष न तो धन का लालच रखा, न ही सत्ता का लोभ-प्रलोभन, फिर भी उन्होंने भारत माता की सेवा के लिए अपना संपूर्ण जीवन अर्पण कर दिया, क्योंकि सेवा करना ही उन्होंने अपना धर्म समझा। उनकी जीवन यात्रा का प्रथम संगम सन 1937 में आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) में हुआ, जब वे लखनऊ में एक मित्र के संपर्क में आए और उस समय वे एक विद्यालय में अध्ययनरत थे। धर्म का यह मानना है कि जीवन के राष्ट्रीयकरण के लिए आवश्यक शुद्धता, परंतु भारतीय परंपरागत विधि से ही मनुष्य को राष्ट्रभक्ति करने समय निकटता से हर साधारण कार्य को किसी विशिष्ट प्रकार की समाज पर कल्याणकारी दिशा में ले जा सकें।

धर्म पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार

पं. दीनदयाल जी ने हिन्दू राष्ट्र के उत्थान के लिए नये स्तर पर कार्य प्रारंभ किया। वे धर्म की सीमाओं से ऊपर उठ कर पूरे राष्ट्र को समाज की एक बड़ी इकाई के रूप में देखते थे। धर्म का यह मानना है कि जीवन के राष्ट्रीयकरण के लिए आवश्यक शुद्धता एवं सत्य को समाज में प्रतिष्ठित करने का नाम मात्र धर्म नहीं है। धर्म वह है, जिसके द्वारा मानव जीवन- संचालन हो। आशा, प्रेरणा, आदि को समूल प्रदान कर सके तथा मनुष्य को प्रगति के चरमोत्कर्ष पर पहुँचा सके। इस दृष्टि से धर्म का उपयुक्त रूप त्याग, तपस्या, प्रयास, प्रोत्साहन और संयम से युक्त होता है।

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मानवता को प्रेरणादायक सोच

पं. दीनदयाल जी की सोच मानवता को प्रेरणादायक रही है। उनका मानना था कि राजनीति केवल सत्ता प्राप्त करने का साधन नहीं है, बल्कि समाज और राष्ट्र को नैतिक और आत्मिक रूप से सुदृढ़ करने का माध्यम है। उनका जीवन हमेशा समाज के लिए समर्पित रहा। पं. दीनदयाल जी ने जो आदर्श प्रस्तुत किए वे आज भी लोगों के मार्गदर्शक बने हुए हैं।

अध्ययनशीलता तथा प्रचंड चिंतन के कारण पं. उपाध्याय जी की विद्वता जग विदित थी। उन्होंने हर विषय को गहराई से समझने का प्रयास किया और वे एक महान विचारक के रूप में उभरे। उन्होंने ‘एकात्म मानववाद’ का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो मनुष्य और समाज के सभी आयामों पर आधारित है। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति और जीवनमूल्यों के आधार पर ही भारत का सच्चा विकास संभव है। उन्होंने पूरे जीवन में इस सिद्धांत को न केवल व्याख्यायित किया, बल्कि उसे व्यावहारिक धरातल पर भी उतारने का काम किया।

राष्ट्रवाद की अवधारणा में पं. दीनदयाल जी ने ‘अंत्योदय’ यानी समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति के कल्याण का विचार दिया। वे मानते थे कि जब तक समाज का सबसे निचला तबका सशक्त नहीं होगा, तब तक राष्ट्र का समग्र विकास संभव नहीं है। यह उनकी राष्ट्रवाद की परिभाषा थी, जो समावेशी और सर्वसमावेशक थी।

उनका यह भी मानना था कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही भारत को सही दिशा प्रदान कर सकता है। उन्होंने पश्चिमी विचारधारा की अंधी नकल के खिलाफ आवाज उठाई और भारत की समस्याओं के समाधान के लिए भारतीय दृष्टिकोण पर जोर दिया। उनका मानना था कि प्रत्येक राष्ट्र का विकास उसके स्वयं के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आधारों पर होना चाहिए।

पं. दीनदयाल जी का यह विचार था कि आर्थिक विकास का मापदंड केवल भौतिक संपन्नता नहीं हो सकता। विकास के साथ-साथ नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का भी विकास होना चाहिए। इस दृष्टि से उन्होंने स्वदेशी की अवधारणा को भी बल दिया और यह स्पष्ट किया कि भारत का आर्थिक विकास आत्मनिर्भरता पर आधारित होना चाहिए।

सामाजिक समरसता के पक्षधर पं. उपाध्याय जी का मानना था कि समाज में जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। उन्होंने सामाजिक समानता और समरसता की बात की और इसके लिए जीवनभर काम किया।

जैसा कि मैंने पहले बताया कि भले ही पूर्ववर्ती सरकारों ने उपाध्यायजी के इतिहास को जनता तक नहीं पहुंचने दिया। लेकिन अब हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2016 के बाद से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के माध्यम से पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर कई सार्वजनिक संस्थानों का नामकरण किया है। दिल्ली में एक सड़क का नाम उनके सम्मान में रखा गया है।

अगस्त 2017 में, उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर करने का प्रस्ताव दिया, क्योंकि उनका पार्थिव शरीर स्टेशन के पास मिला था। इस कदम का विरोध विपक्षी दलों ने संसद में किया, और समाजवादी पार्टी ने इसे स्वतंत्रता संग्राम में उपाध्याय के योगदान की कमी का हवाला देते हुए अस्वीकार किया। यह उनकी तुच्छ सोच को बताता है।

दीन दयाल शोध संस्थान उनके जीवन और कार्यों पर आधारित सवालों का उत्तर देने का काम करता है। 2018 में, सूरत में एक नए केबल-स्टेड ब्रिज का नाम भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखा गया। इसके अलावा, 16 फरवरी 2020 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मारक केंद्र का उद्घाटन किया और 63 फुट ऊंची उनकी प्रतिमा का अनावरण किया, जो उनके सम्मान में बनाई गई सबसे ऊंची प्रतिमा है।

पं. दीनदयाल उपाध्याय एक सच्चे राष्ट्रवादी थे। उनका संपूर्ण जीवन राष्ट्र के प्रति समर्पित था। उनके विचार, उनके आदर्श और उनके कार्य आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनकी असमय मृत्यु ने राष्ट्र को अपूरणीय क्षति पहुँचाई, लेकिन उनके विचार और सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं।

उनके विचार आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। पं. दीनदयाल जी का जीवन सादगी, ईमानदारी और समर्पण का अद्वितीय उदाहरण है। उनकी स्मृति और उनके आदर्श आज भी राष्ट्र निर्माण के कार्य में प्रेरणा प्रदान करते हैं।

सीताराम पोसवाल


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