National interest comes first, not state interest

राजहित नहीं राष्ट्रहित प्रथम: तीनों नए कानूनों में भारत सरकार ने यह साबित कर दिया है


देश में तीन नए कानून लागू हो गए हैं। एफआईआर दर्ज होने से लेकर निर्णय किए जाने तक की समयसीमा तय करते हुए अंग्रेजों के बनाए सिस्टम को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अंग्रेजों के बनाए कानून खत्म कर दिए हैं। अब दिन लद गए जब लोग कहते थे कि कोर्ट में सिर्फ तारीख पर तारीख मिलती है।

अब हम गर्व से कह सकते हैं कि हमारा अपना तंत्र है और हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं। यही नहीं इन कानूनों को गौर से देखें तो राजहित की बजाय राष्ट्रहित प्रथम की भावना झलकती है। न्याय यदि देर से होता है तो न्याय नहीं होता है इस सिद्धान्त को मानते हुए भारत सरकार के बनाए यह कानून न्याय को सुगम, सुचारू और शीघ्र करेंगे। यही नहीं आतंकवाद की परिभाषा पहली बार कानून में तय की गई है। मॉब लिंचिंग सिर्फ हत्या नहीं बल्कि उससे भी गंभीर अपराध है उस पर अब मौत की सजा दी जा सकेगी। देश में कहीं भी एफआईआर दर्ज हो सकेगी। सब कुछ डिजिटलाइज्ड होगा। सरकार या सरकारी तंत्र ऐसा नहीं कर सकता कि मर्जी से केस वापस ले ले। जब तक पीड़ित का पक्ष नहीं सुना जाएगा तब तक यह संभव नहीं होगा। यह एक बड़ा प्रावधान है जो आम नागरिकों को सरकार यानि कि अफसरशाही से बड़ा अधिकार देती है।ऐसे बहुत सारे प्रावधान है जो इन कानूनों को भारत और भारतीयता से जोड़ता है। हमारे न्याय के मौलिक सिद्धान्तों और मौलिक विचारों से जोड़ता है।

अब मैकाले का काल बीता

मैकाले ने भारतीय दंड संहिता लिखी, वह मैकाले जो खुद दो अंडों की चोरी का केस हार गया था। उसका पूरा नाम थॉमस बैबिंगटन मैकाले था। ब्रिटिश इतिहास कार और विग पार्टी के नेता मैकाले ही भारत में पश्चिमी शिक्षा तंत्र को लागू करने वाला था। जिसने भारत में फारसी की जगह अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा में बदल दिया। वह छोटे कानूनों की बजाय निबंधनुमा लेख अधिक लिखता था। उसी ने आईपीसी और सीआरपीसी की अवधारणा रची। राष्ट्रवादी विचारधारा वाले लोग कहते हैं कि मैकाले ने आईपीसी इस हिसाब से बनाई कि भारत के लोगों को कुत्तों की तरह ट्रीट किया जा सके।

यही नहीं दंड प्रक्रिया संहिता में भी भारत और भारतीयता को कुचलने का काम किया। राजद्रोह का कानून उसका सबसे ज्वलंत और अहम उदाहरण है कि मैकाले और उसके आका भारत से क्या चाहते थे। इस कानून के कारण हमारे हजारों क्रांतिकारी मौत का शिकार हुए। लाखों प्रताड़ित हुए। मैं गलत नहीं लिखूंगा कि इन कानूनों ने भारतीयों, भारत और भारतीयता तीनों को गहरे दंश दिए हैं। अब राजद्रोह अपराध नहीं होगा, लेकिन राष्ट्र के खिलाफ द्रोह किया गया तो अपराध होगा। हम 75 साल से आजाद देश हैं, लेकिन राष्ट्रद्रोह जैसा शब्द कानून में लाना देश के प्रति सच्चे समर्पण श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। यह एक घोर तानाशाही ​और एक देश को गुलामी में रखे रखने की विचारधारा का अंत है।

तीन नए कानून, एक नए युग की शुरूआत

तो कहना गलत नहीं होगा कि आज से यानि कि एक जुलाई 2024 में भारत आपराधिक न्याय के एक नए युग की शुरुआत होने जा रही है। यह एक ऐतिहासिक दिन है, जब देश में भारतीय दंड संहिता, अपराध प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनिमय लागू किए जा रहे हैं। इन नए और प्रभावी कानूनों से मुकदमे जल्दी निपटेंगे और तारीख पर तारीख के दिन लद जाएंगे।

दंड नहीं न्याय और दंड प्रक्रिया नहीं नागरिक सुरक्षा

जैसा कि नाम में ही स्पष्ट है ‘भारतीय दंड संहिता’ की बजाय ‘भारतीय न्याय संहिता’! इसका अर्थ है कि राष्ट्र को मां मानने वाले लोग ‘दंड’ की बजाय ‘न्याय’ में यकीन रखते हैं। ‘अपराध प्रक्रिया संहिता’ की जगह ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’ अर्थात अपराध के विचारण और प्रोसिजर वाले नाम की जगह नागरिकों की सुरक्षा प्रथम है। साक्ष्य अधिनियम में नए प्रावधान जैसे कि आईटी का उपयोग आदि जोड़ने से न्याय शीघ्र, सुलभ और सम्यक होगा।

अब तारीख पर तारीख नहीं

पहले के तीनों भारतीय कानूनों में…! नहीं—नहीं बीत चुके कानूनों को भारतीय कानून कहना गलत होगा। वे अंग्रेजों के कानून थे और उनमें दो बड़ी समस्याएं थी। पहली देरी से न्याय यानि कि तारीख पर तारीख और दूसरा धनबल का प्रभाव। परन्तु न्यायपालिका की टाइमिंग और परफोरमेंस की अकाउंटेबिलिटी सुनिश्चित करके भारत की संसद ने अंग्रेजियत वाले सिस्टम को ठेंगा दिखा दिया है। अब साहबियत, अंग्रेजियत और धनबल से न्याय वालों के दिन लद गए हैं। अपराधियों की संपत्ति जब्त होने से कानून के प्रति आमजन में विश्वास और अपराधियों में डर कायम होगा। तीनों नये कानूनों में त्वरित न्याय एक महत्वपूर्ण विषय है। तो इन कानूनों में त्वरित न्याय के लिए प्रथम सूचना रिपोर्ट से लेकर फैसले किए जाने तक को समय सीमा में बांध दिया गया है। आपराधिक ट्रायल को गति देने के लिए नये कानून में 35 जगह टाइम लाइन जोड़ी गई है। शिकायत मिलने पर एफआइआर दर्ज करने, जांच पूरी करने, न्यायालय की ओर से केस का संज्ञान, साक्ष्य दाखिल करने और मुकदमे में ट्रायल पूरा होने, फैसला सुनाने तक की समय सीमा तय कर दी गई है।

नये कानून से मुकदमे जल्दी निपटेंगे

साथ ही आधुनिक तकनीक का भरपूर इस्तेमाल और इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों को कानून का हिस्सा बनाने से मुकदमों के जल्दी निपटारे का रास्ता आसान हुआ है। शिकायत, सम्मन और गवाही की प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों, जैसे आईटी टूल्स और सॉफ्टवेयर्स का उपयोग, न्याय प्रक्रिया की गति को बढ़ाने में सहायक होगा। कानून में निर्धारित समय सीमा को उसी उद्देश्य के साथ लागू किया जाने की मंशा, जैसा कि कानून के निर्माण के समय निर्धारित किया गया है। इसलिए यह न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

पुलिस की मनमर्जी नहीं चलेगी

इस कानून की सबसे महत्वपूर्ण बात जो जनता के लिए है, वह है समय। पीड़ितों को न्याय समय पर मिले और अपराधियों को दंड देने में देरी नहीं हो। यह न्याय के नैसर्गिक सिद्धान्त की अनुपालना का एक अनूठा उदाहरण है। तीन दिन में एफआईआर की अनिवार्यता, महिला सुरक्षा से जुड़े कानूनों में त्वरित प्रक्रिया तथा विचारण और आरोप पत्र पेश करने के बाद केस का संज्ञान लेने, प्ली बार्गेनिंग का समय तय किया जाना बेहतरीन प्रावधान हैं।

हालांकि आरोपपत्र दाखिल करने के लिए पहले की तरह 60 और 90 दिन का समय तो यथावत ही है। परन्तु अब यदि जांच 90 दिन के बाद भी जारी रखी जानी है तो कोर्ट से इजाजत लेनी होगी। यही नहीं किसी भी जांच को 180 दिन से ज्यादा लंबित नहीं रखा जा सकता। 180 दिन यानि कि छह माह में में आरोपपत्र या अंतिम प्रतिवेदन दाखिल करना ही होगा। ऐसे में जांच चालू रहने के नाम पर आरोपपत्र किसी आरोप पत्र या अंतिम प्रतिवेदन को अनिश्चितकाल के लिए नहीं लटकाना बंद हो जाएगा। अफसरों, नेताओं, प्रभावशालियों के विरुद्ध मामलों को ऐसे ही लटकाया जाता था जो अब दूर की कौड़ी है। पहले अफसर अपने स्तर ही जांच की फाइल सालों तक घुमा सकते थे, अब उन पर कोर्ट का डंडा रहेगा।

अदालत की जिम्मेदारियां भी तय

इन कानूनों में पुलिस के लिए टाइमलाइन तय करने के साथ ही अदालत के लिए भी समय सीमा तय कर दी गई है। मजिस्ट्रेट दो सप्ताह के भीतर केस का संज्ञान अनिवार्यत: लेंगे। केस ज्यादा से ज्यादा चार महीनों में ट्रायल पर सुनवाई के लिए आ जाए इसके लिए कई उपाय तय किए गए हैं। प्ली बार्गेनिंग की समय सीमा भी तय कर दी गई है। नया कानून प्ली बार्गेनिंग पर कहता है कि यदि आरोप तय होने के तीस दिन के भीतर आरोपी अपना गुनाह स्वीकार कर लेगा तो उसे कम सजा दी जाएगी। वैसे अभी तक अपराध प्रक्रिया संहिता में प्ली बार्गेनिंग के लिए कोई भी समय सीमा तय नहीं थी। नये कानून के अनुसार केस में दस्तावेज की प्रक्रिया भी तीस दिन में पूरी करने के प्रावधान है। यही नहीं फैसला सुनाने की भी समय सीमा तय की गई है। किसी भी मुकदमे का ट्रायल पूरा होने के बाद अदालत को एक महीने यानि कि 30 दिन में फैसला सुनाना होगा। नया कानून कहता है कि लिखित कारण दर्ज करने पर फैसले की अवधि 45 दिन तक हो सकती है लेकिन इससे ज्यादा नहीं।

फांसी पर लटकाने वाले मामले नहीं लटकेंगे

नये कानून में दया याचिका के लिए भी समय सीमा तय कर दी गई है। नये कानून में दया याचिका के लिए भी समय सीमा तय कर दी गई है। सुप्रीम कोर्ट से अपील खारिज होने के एक माह के भीतर दया याचिका दाखिल करनी होगी।

राज नहीं राष्ट्र महत्वपूर्ण है

स्वर्गीय अटलजी का भाषण है कि सरकारें आएंगी—जाएंगी, पार्टियां बनेंगी—बिगड़ेंगी, लेकिन यह देश रहना चाहिए। इसका संविधान अमर रहना चाहिए। उसी तरह राज यानि कि इंस्पेक्टर राज यानि कि अंग्रेज और अंग्रेजियत के राज को यहां खत्म किया गया है। राजद्रोह जैसा कानून नहीं होगा। हां राष्ट्र के खिलाफ अपराध है तो बख्शा नहीं जाएगा। यही नहीं राज्य यानि कि सरकार अब अपनी मर्जी से एकतरफा केस वापस नहीं ले सकती। पीड़ित का पक्ष सुना जाना अनिवार्य है। यह एक बड़ा प्रावधान है जो आम नागरिकों को सरकार यानि कि अफसरशाही से बड़ा अधिकार देती है।

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साक्ष्य एक महत्वपूर्ण तथ्य है

किसी भी तरह के न्याय में साक्ष्य सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है। साक्ष्यों का संग्रहण कानूनी रूप से नवोन्मेषी और न्याय के अनुरूप तय किया जाना इन कानूनों को हमारी राष्ट्र प्रथम की विचारधारा से जोड़ता है। पीडि़त कहीं भी एफआइआर करा सकेंगे अर्थात पूरा राष्ट्र एक है। उसे मामले की जांच की प्रगति रिपोर्ट भी मिलेगी। प्रथम सूचना रिपोर्ट, किसी भी प्रकरण की केस डायरी, चार्जशीट, जजमेंट आदि सभी दस्तावेजों का डिजिटलाइजेशन होगा। तलाशी और जब्ती में आडियो वीडियो रिकार्डिंग की अनिवार्यता ने पुलिस की मनमर्जी पर लगाम लगाई है। वहीं गवाहों के लिए ऑडियो वीडियो से बयान रिकार्ड कराने का विकल्प देकर इस कानून ने न्याय में जनता की प्रभावी और निडर भागीदारी का आधार दिय किया है। सात साल या उससे अधिक सजा के अपराध में फारेंसिक सबूतों की अनिवार्यता ने भी यहां एक नया बिंदु जोड़ा है। मुकदमों की अधिकता को देखते हुए छोटे मोटे अपराधों में जल्द निपटारे के लिए समरी ट्रायल एक प्रभावी कदम है। साथ ही पहली बार के अपराधी के एक तिहाई सजा काटने पर ट्रायल के दौरान जमानत भी मिल सकेगी। अपराधी भगोड़े यानि एब्सकॉर्डर होने पर संपत्ति जब्त करना एक प्रभावी कदम है और यही नहीं भगोड़े अपराधियों की अनुपस्थिति में भी मुकदमा चलेगा। यह एफआर की संख्या को कम करेगा।

देश के विधिमंत्री हमारे राजस्थान के लाड़ले अर्जुन राम मेघवाल ने भी कहा है कि प्रौद्योगिकी और फोरेंसिक विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे विकास को देखते हुए ये तीनों कानून बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। मोदी सरकार का लक्ष्य भारत देश की जनता को न्याय प्रदान करना है।

ऐसे में हमें इन नए कानूनों का स्वागत करना चाहिए। इन्हें बदली मानसिकता के साथ लागू करना चाहिए कि यह देश अब अपने कानून, अपनी विचारधारा, अपना दर्शन और अपने लोगों के लिए, अपने दम पर काम करने वाला है। यहां राज नहीं राष्ट्र प्रथम है। जय हिंद…!

सीताराम पोसवाल की कलम से…


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