राजस्थान जैसे सूखे राज्य में भी गौ-माता के लिये गौशालाओं का निर्माण, उनके चारे-पानी की व्यवस्था करने को अपना नैतिक कर्तव्य मानते हैं सवाईमाधोपुर के खिरनी गाँव में जन्मे समाजसेवी एवं गौ-सेवक श्री सीताराम पोसवाल।
पौराणिक काल से ही भारतीय समाज और परिवारों में गाय का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस कारण हर हिंदू गाय को एक पशु नहीं माता का स्थान देता है। गौ-सेवा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक और आर्थिक महत्व भी अत्यधिक है। बच्चों के पोषण के लिये माँ के बाद गाय के दूध को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, इसलिये भारतीय हिंदू परिवार गाय को गौ-माता बुलाता है। पौराणिक कथाओं में कामधेनु गाय का जिक्र आता है जो सभी मनोकामना पूर्ण करती हैं।
भारतीय संस्कृति एवं गौसेवा में अटूट विश्वास रखने वाले गौसेवक सीताराम पोसवाल(Sitaram Poswal Gau Sevak) अपने जन्मदिन पर स्वयं अपने हाथों से गौ-माता को चारा खिलाते हैं एवं उनकी सेवा करते हैं। सीताराम पोसवाल के लिये गौ-सेवा एक दिन का काम नहीं है, वह इसे पूरे वर्ष करते हैं। गौ-सेवा को समर्पित श्री सीताराम पोसवाल एक समाजसेवी हैं एवं अपनी सामाजिक संस्था पी.जी. फाउंडेशन के माध्यम से उन्होंने सवाईमाधोपुर एवं टोंक जिले की विभिन्न गौशालाओं का जीर्णोद्धार करवाया, वहीं कुछ नई गौशालाएं भी निर्मित करवाई।
गौ-सेवा के लिये समर्पित सीताराम पोसवाल कहते हैं कि उन्होंने बचपन से अपने परिवार में गौ-सेवा का समर्पण देखा। बड़े होने पर जब उन्होंने भारतीय संस्कृति का अध्ययन करना शुरू किया तो उनकी श्रद्धा गौमाता के प्रति और बढ़ी। श्री सीताराम पोसवाल राजा दिलीप की कथा का उदाहरण देते हैं। जिस रघुवंश में भगवान राम पैदा हुये उसी रघुवंश में राजा दिलीप भी जन्मे। दंत-कथाओं के अनुसार राजा दिलीप नंदिनी नामक गाय की सेवा-सुश्रुषा करते थे। एक दिन एक शेर ने नंदिनी गाय पर आक्रमण कर दिया और उसे अपने पंजे में जकड़ लिया। राजा दिलीप ने तुरंत शेर को मारने के लिये तीर निकालने हेतु तरकश की ओर हाथ बढ़ाया लेकिन उनके हाथ वहीं अकड़ गए और वह तीर नहीं निकाल सके। एक तरफ शेर के पंजे में फंसी भयाक्रांत नंदिनी गाय आँसू लिये राजा दिलीप की ओर सहायता की दृष्टि से देख रही थी तो वहीं हाथ अकड़ जाने से असहाय हुए राजा दिलीप नंदिनी गाय को देख आँसू बहा रहे थे।
कोई उपाय न देख राजा दिलीप ने शेर से प्रार्थना की कि वह नंदिनी गाय को छोड़ दे और उनको खा ले। यह कहते हुए राजा दिलीप ने अपना शरीर शेर के सामने खाने लिये प्रस्तुत कर दिया। उसी पल उन पर फूलों की वर्षा होने लगी, अकड़ा हाथ ठीक हो गया। समस्त देवता उनकी गौसेवा की भावना की परीक्षा ले रहे थे। राजा दिलीप अब तक निसन्तान थे, लेकिन इस घटना के बाद उन्हें देवताओं और गौमाता का आशीर्वाद मिला जिससे उन्हें संतान हुई।
गौसेवक सीताराम पोसवाल(Sitaram Poswal Gau Sevak) कहते हैं कि जिस संस्कृति में रघुवंश काल से ही गौसेवा के महत्व को इतना बताया गया हो, जहाँ कामधेनु गाय देवताओं के बराबर हो वहाँ इस युग में ग्रामीण परिवारों को अब तक पालने वाली गौमाता को सड़कों पर प्लास्टिक खाने के लिये कैसे छोड़ा जा सकता है? शहरीकरण ने गायों के चरने के लिये हरियाली खत्म कर दी जिसके परिणामस्वरूप गाय अपने प्राकृतिक भोजन को प्राप्त करने में असमर्थ है और वह इधर-उधर कचरे में से प्लास्टिक खा लेती है जिससे उनकी मृत्यु तक हो जाती है। इंसान की गलती की सजा उस निरीह पशु को क्यों मिले जिसने हम सब के बचपन को अपने दूध से सींचा है। इसी भावना के कारण श्री सीताराम पोसवाल गौमाता के प्रति अपनी आस्था को सिर्फ आस्था तक सीमित नहीं रखते बल्कि गौसेवा को अपना मिशन बना चुके हैं।
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सीताराम पोसवाल गौसेवा को सिर्फ एक धार्मिक काम नहीं मानते, बल्कि इसे एक सामाजिक और आर्थिक उत्पादकता का माध्यम भी मानते हैं। वह मानते हैं कि एक गाय की सेवा से न सिर्फ एक परिवार अपने बच्चों को दूध पिला सकता है बल्कि उस दूध की बिक्री के द्वारा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी हो सकता है। पोसवाल कहते हैं कि यदि गौसेवा को संगठित रूप से पूरे प्रदेश में किया जाये यह राजस्थान के ग्रामीण इलाकों के लोगों को आर्थिक संबल देगा।
आज गौसेवा के माध्यम से गौसेवक सीताराम पोसवाल(Sitaram Poswal Gau Sevak) ग्रामीण आर्थिक उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। श्री सीताराम जी का यह योगदान समाज के लिए महत्वपूर्ण है। पूरे क्षेत्र में उनकी इस निष्काम सेवा की प्रशंसा की जाती है। अपने सामाजिक कार्यों के कारण युवाओं में श्री सीताराम पोसवाल एक आदर्श की तरह देखे जाते हैं। सवाईमाधोपुर और टोंक जिले के लोगों का कहना है कि अगर पूरे राज्य सिर्फ 5 और सीताराम पोसवाल जैसे समाजसेवी हो जाएं तो सड़क पर घूमती गायों और गौशालाओं की स्थिति में बहुत बड़ा सकारात्मक परिवर्तन आयेगा।
हिंदू संस्कृति की विचारधारा को मानने वाली भारतीय जनता पार्टी ने श्री सीताराम पोसवाल की गौसेवा एवं समाज के उत्थान के लिये वर्षों के किये जा रहे कार्यों को देखते हुये ओबीसी मोर्चा में उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी है।
व्यावसायिक व्यस्तताओं के साथ राजनैतिक जिम्मेदारी मिलने के बावजूद श्री सीताराम पोसवाल के गौसेवा अभियान में कोई कमी नहीं आई है। वह आज भी जितना समय ग्रामीणों के आर्थिक उत्थान पर लगाते हैं उतना ही गौसेवा के लिये भी लगाते हैं।